वैश्विक जलवायु परिवर्तन के निदान के लिए वनों का विकास जरूरी: प्रधान मुख्य वन संरक्षक चतुर्वेदी



रायपुर, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् देहरादून के तत्वाधान में रेड्ड प्लस कार्य योजना के निर्माण तथा छत्तीसगढ़ राज्य वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की क्षमता निर्माण के लिए दो दिवसीय हितधारक परामर्श कार्यशाला एवं दो दिवसीय विशेषज्ञ कार्यशाला का आयोजन 17 फरवरी से 20 फरवरी 2021 तक रायपुर मे किया गया है। कार्यशाला के उद्घाटन समारोह के अवसर पर छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख  राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है तथा इसके निवारण हेतु सजगता एवं सावधानी जरूरी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ मे वन विभाग द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे मे विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य देश का दूसरा कार्बनिक राज्य बनने की ओर अग्रसर है।
कार्यशाला में महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् देहरादून श्री ए.एस. रावत ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए रेड्ड प्लस के विभिन्न आयामांे तथा परिषद द्वारा किए जा रहे कार्यों के बारे में विस्तार से अवगत कराया। उन्होंने कार्यशाला की उपयोगिता के संबंध में भी विस्तृत जानकारी दी। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री तपेश कुमार झा ने जलवायु परिवर्तन जैसी सम्सयाओं के निदान के लिए वैश्विक स्तर पर चिंतन एवं स्थानीय स्तर पर निदान करने की आश्यकता पर बल दिया। कार्यक्रम में निदेशक (अंतर्राष्ट्रीय सहयोग) एवं परियोजना निदेशक, पारितंत्र सेवाएं सुधार परियोजना, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद  अनुराग भारद्वाज ने इस कार्यशाला के उद्देश्यों के बारे में विस्तृत जानकरी दी।

उद्घाटन सत्र मे अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक एवं परियोजना निदेशक, पारितंत्र सेवाएं सुधार परियोजना, छत्तीसगढ़ वन विभाग श्री के. मुरूगन, रेड्ड प्लस विशेषज्ञ  वी.आर.एस. रावत तथा अन्तर्राष्ट्रीय एकीकृत विकास केन्द्र काठमान्डू नेपाल के रेड्ड प्लस विशेषज्ञ डॉ. भास्कर सिंह कार्की एवं श्री नवीन भट्टाराय ने रेड्ड प्लस कार्य योजना को बनाने की जानकारी कार्यशाला के प्रतिभागियों के साथ साझा की। परियोजना प्रबन्धक, पारितंत्र सेवाएं सुधार परियोजना, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् देहरादून डॉ. आर.एस. रावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यशाला मे छत्तीसगढ़ के वन विभाग के अधिकारी, संयुक्त वन प्रबन्धन समिति के सदस्य, पशुपालन, कृषि विभाग, उद्यान विभाग एवं भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद्, के विभिन्न आंचलिक केन्द्रों के वैज्ञानिकों और विभिन्न एन.जी.ओ. के सदस्यों की उपस्थिति रही।

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