मानव-हाथी द्वंद और धान की बर्बादी के संदर्भ में अपने पाप कांग्रेस पर थोपने की भाजपा की सियासी नौटंकी

 


रायपुर। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि भूपेश बघेल सरकार हाथियों  को जंगल में रोकने के हरसंभव उपाय कर रही है, अब तक के अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि जब भी हाथी गांव में हमला करते हैं तो धान रखने वाले घरों में ही ज्यादातर हमले होते हैं, और धान को खाकर हाथी वापस चले जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए अब सरकार प्रयोग के तौर पर हाथियों को गांव से बाहर जंगल में ही धान देने जा रही है, ताकि हाथी बस्तियों की ओर ना घूमें। छत्तीसगढ़ में मानव हाथी द्वंद और धान के निराकरण, बर्बादी के गुनहगार 15 साल के पूर्ववर्ती रमन सिंह सरकार और केंद्र की मोदी सरकार है। 1976 के 42 वें संविधान संशोधन में वन और वन्य जीव राज्यसूची से हटाकर समवर्ती सूची में शामिल किया गया। छत्तीसगढ़ में 2005 में पहली बार हाथी अभ्यारण बनाने संकल्प पारित किया गया। तत्कालीन रमन सरकार के द्वारा बादलखोल, सेमरसोत अभ्यारण और तमोर-पिंगला अभ्यारण के साथ हसदेव अरण्य और धर्मजयगढ़ के 450 वर्ग किलोमीटर का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया, जिसे केंद्र सरकार के द्वारा 2007 में स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई थी। 2007 से दिसंबर 2018 तक रमन सिंह सरकार ने केंद्र से स्वीकृति मिलने के बावजूद भी इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी नहीं किया इसका स्पष्ट मतलब है कि रमन सरकार की नियत छत्तीसगढ़ में हाथी रिजर्व बनाने की कभी नहीं रही। 20 जुलाई 2009 को रमन सिंह सरकार के दौरान ही वन विभाग के सचिव ने पत्र लिखकर नए अभ्यारण बनाने से इनकार किया था। यूपीए सरकार के समय केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने हस्तक्षेप कर देश के सात स्थानों को अत्यधिक महत्वपूर्ण जैव विविधता संपन्न क्षेत्र मानते हुए नो-गो-एरिया घोषित किया गया था, जिसमें छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य और तमोर-पिंगला का एरिया भी शामिल था। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद उक्त नो-गो-एरिया के क्षेत्र को कम करते हुए वहां पर भी माइनिंग की अनुमति दी गई, जो भाजपा के राजनीतिक पाखंड और पूंजीवादी चेहरे को उजागर करता है। भूपेश बघेल सरकार तो 1995.48 वर्ग किलोमीटर में “लेमरू रिज़र्व प्रोजेक्ट“ के रूप में हाथी रिजर्व बनाने की दिशा में काम कर रही है।


प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में रमन सरकार के दौरान औसत 50 लाख मैट्रिक टन धान खरीदी होती थी, भूपेश बघेल सरकार ने विगत वर्ष रिकॉर्ड 92 लाख़ मिट्रिक टन धान खरीदी छत्तीसगढ़ के 21 लाख़ से अधिक किसानों से की है। वर्तमान भूपेश बघेल सरकार के द्वारा अधिक धान खरीदा जा रहा है, अधिक किसानों से धान खरीदा जा रहा है और अधिक दाम पर धान की खरीदी की जा रही है। एमएसपी तय करना और एमएसपी पर खरीदी केंद्र का दायित्व है राज्य सरकार एक एजेंसी के तौर पर कार्य करती है। राज्य सरकार द्वारा उपार्जित सरप्लस धान, चावल के स्टाफ को केंद्रीय पूल में प्रतिबंधित किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। पूर्व में 60 लाख मैट्रिक टन चावल केंद्रीय पूल में लेने की सैद्धांतिक अनुमति देने के बाद छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं के बरगलाने के चलते ही केंद्र की मोदी सरकार  द्वारा केंद्रीयपुल का कोटा 60 लाख़ से घटाकर 24 लाख कर दिया गया। यदि केंद्र के द्वारा वादे के अनुरूप 60 लाख मैट्रिक टन चावल ले लिया गया होता तो छत्तीसगढ़ में ना एक बीजा धान बचा होता और ना ही एक दाना अतिरिक्त चावल। राज्य सरकार द्वारा उपार्जित धान से सीधे एथेनाल बनाने की अनुमति भी केंद्र के द्वारा नहीं दी जा रही है, उसमें भी एफसीआई के चावल का उपयोग करने की शर्त लगा दी गई है।


प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा उपार्जित धान को सुरक्षित रखने के लिए 15 साल में रमन सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया। 2005 में राज्य सरकार की क्षमता 5 लाख़ मेट्रिक टन के भंडारण की थी, जो दिसंबर 2018 की स्थिति में भी केवल उतनी ही बनी रही। संग्रहण केंद्रों में भी कोई व्यवस्था नहीं की गई जिससे लाखों मीट्रिक टन धान बर्बाद होते रहे। भूपेश बघेल सरकार ने तो आते ही प्रत्येक धान संग्रहण केंद्र में चबूतरे का निर्माण करवाया और आने वाले वर्षों में शेड और भंडारण के लिए गोदाम भी बनाए जाएंगे। इस साल 157 नये धान खरीदी केंद्र भी बनाये गए। 2016-17 में धान का समितियों से सीधा उठाव मात्र 41 प्रतिशत था, जबकि कांग्रेस पार्टी के लगातार प्रयासों से 2019-20 से समितियों से सीधा उठाव बढ़कर 51.5 प्रतिशत हो गया। धान की बर्बादी के असल गुनाहगार पूर्वर्ती रमन सरकार और वर्तमान केंद्र की मोदी सरकार है। छत्तीसगढ़ में एफसीआई को भी धान के उठाव की अनुमति मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के व्यक्तिगत प्रयासों के बाद, बहुत देर से दी गयी छत्तीसगढ़ सरकार तो किसानो और किसान के उपजाए अन्न के सम्मान की लड़ाई लड़ रही है। अब धान रखे घरों में हाथियों के लगातार हो रहे हमले को ध्यान में रखते हुए प्रयोग के तौर पर हाथियों को जंगल में ही धान देने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके लिए खाद्य विभाग धान के स्टॉक का ट्रांसफर किया जायेगा। कुल उपार्जित 92 लाख मैट्रिक टन धान में से पीडीएस की जरूरत, केंद्रीय पूल में चावल जमा करने तथा ओपन मार्केट में नीलामी के बाद बचे लगभग डेढ़ लाख मेट्रिक टन धान का ही कुछ हिस्सा, प्रयोग के लिए खाद्य विभाग द्वारा अंतरित किया जाएगा। वन विभाग द्वारा खरीदी का आरोप निराधार है। मानव-हाथी द्वंद और धान की बर्बादी के संदर्भ में अपने पाप कांग्रेस पर थोपने की भाजपा की सियासी नौटंकी से छत्तीसगढ़ के लोग बखूबी वाकिफ है।

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