आज भी क्यों कैद में हैं भगवान शिव! साल में एक बार महाशिवरात्रि पर खुलते हैं ताले जानिए रायसेन किले की कहानी



 नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के रायसेन किले में स्थित प्राचीन सोमेश्वर धाम मंदिर को लेकर कई दिनों से कलह देखने को मिल रहा है. कारण है किले में 800 फीट की ऊंचाई पर बने सोमेश्वर धाम मंदिर में भगवान शिव का ताले में रहना. पहले पंडित प्रदीप मिश्रा ने शिव मंदिर का ताला खोलने की मांग उठाई तो उनके समर्थन में कई नेता और संगठन खड़े हो गए. अब बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने मुद्दा गरम कर दिया. उन्होंने सोशल मीडिया पर रायसेन के सोमेश्वर धाम मंदिर और किले का इतिहास पोस्ट किया और वहां जाकर भगवान सोमेश्वर का गंगोत्री के जलाभिषेक करने की घोषणा कर दी. इसके बाद से किले से जुड़ी कई रोचक कहानियां में आ गईं. पढ़िए....



शेरशाह ने मंदिर हटाकर बनवाई थी मस्जिद 

मंदिर का निर्माण 10वीं से 11वीं शताब्दी के बीच हुआ था. इसे राजा उदयादित्य ने बनवाया था. कहा जाता है कि उस दौर में यहां राजघराने की सिर्फ महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थीं. बाद में यहां भगवान ताले में बंद कर दिए गए. मंदिर में ताला लगाने के कारण पता करने पर बताया जा रहा है कि सन् 1543 तक ये मंदिर अस्तित्व में रहा. इसके बाद रायसेन के राजा पूरणमल को शेरशाह ने हरा दिया और मंदिर से शिवलिंग हटाकर मस्जिद बना दी. लेकिन इस दौरान गर्भगृह के ऊपर गणेश जी की मूर्ति नहीं हटी, जिससे बाद में सबूत मिले कि यहां मंदिर था. कहा जाता है कि 11वीं शताब्दी के समय बने इस किले पर 14 बार राजाओं, शासकों ने हमले किए. इस दौरान भगवान शिव भी ताले में बंद हो गए. बाद में शिव मंदिर दोबारा खुला पर आज तक ताले में है.



साल में एक बार महाशिवरात्रि पर खुलते हैं ताले

सन् 1974 तक मंदिर पर ताले लगे रहे. इसके बाद एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ, जिसके फलस्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता प्रकाशचंद सेठी ने मंदिर के ताले खुलवा दिए. लेकिन हमेशा के लिए नहीं. मंदिर के पट साल में एक बार महाशिवरात्रि पर 12 घंटे के लिए ही खोले जाते हैं. मंदिर की चाबी पुरातत्व विभाग के पास ही रहती है. महाशिवरात्रि के दिन सुबह 5 बजे SDM, तहसीलदार सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के सामने मंदिर के पट खोले जाते हैं. शाम 5 बजे प्रशासनिक अधिकारियों के सामने मंदिर पर दोबारा ताले लग जाते हैं. इस मंदिर से जुड़े कई तरह की रोचक कहानियां है. 


खुद अपनी पत्नी रत्नावली का सिर काटा

किले को जीतने के लिए 15वीं सदी में शेरशाह सूरी ने सिक्कों को गलवा कर तोपें बनवाई थीं. इतिहास पर नजर डालें तो पता लगता है कि दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी ने लगातार चार माह किले की घेराबंदी की, लेकिन इसे हासिल नहीं कर पाया. इसके बाद किला विजय करने के लिए उसने तांबे के सिक्कों को गला कर तोपें बनवाई. शेरशाह ने राजा पूरणमल को धोखे से हराया था. कहते हैं कि जब राजा पूरणमल हार गए तो उन्होंने खुद अपनी पत्नी रत्नावली का सिर काट दिया था, जिससे वो शत्रुओं के हाथ न लगे. इसके बाद शेरशाह सूरी के सैनिकों ने उनके बेटे को वहीं मार डाला था और बेटी को वैश्यालय में दे दिया था


किले से जुड़ी बड़ी घटनाएं

17 जनवरी 1532 ई. को बहादुर शाह ने रायसेन किले को घेर लिया

6 मई 1532 ई. को रानी दुर्गावती ने 700 राजपूतानियों के साथ जौहर किया

10 मई 1532 ई. को महाराज सिलहादी, लक्ष्मणसेन सहित राजपूत सेना ने बलिदान दिया

जून 1543 ई. में रानी रत्नावली सहित कई राजपूत महिलाओं एवं बच्चों ने बलिदान दिया

जून 1543 ई. में शेरशाह सूरी के हमले में राजा पूरणमल और सैनिकों की मौत



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