छत्तीसगढ़ के इस गांव में रावण “दहन” नहीं…होता है “वध”..निकलता है “अमृत”

 


केशकाल। विजयदशमी या दशहरा का नाम सुनते ही सभी के मन में रावण दहन की कल्पना हो ही जाती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा स्थान भी है जहाँ रावण का दहन नहीं बल्कि उसका वध किया जाता है। इस वध के पीछे है रावण की नाभि में भरा हुआ अमृत।

सूबे के कोण्डागांव जिले के विकास खंड फरसगांव के एक छोटे से गांव में सन 1942 से ये अनूठी परंपरा चल रही है। यहां रावण दहन करने के लिए नहीं बल्कि उसका वध करने के लिए मिटटी से बनाया जाता है। यह अनोखी परम्परा कोण्डागांव जिले के ग्राम हिर्री और भुमका में निभाई जाती है।

इन दोनों गांवों में ही दशहरा उत्सव इसी अनोखे तरीके से मनाया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि रावण को मारना मुश्किल था, क्योंकि उनकी नाभि में अमृत था। भगवान राम के द्वारा रावण की नाभि में तीर चलाकर रावण का वध किया गया था।

अमृत के लिए टूट पड़ते हैं ग्रामवासी

रामायण की कथा के अनुसार ग्रामवासी भी इसी प्रक्रिया को दोहराते हुए रावण का वध करते हैं। उसके पश्चात ग्रामवासी रावण की नाभि से निकलने वाले अमृत के लिए रावण पर टूट पड़ते हैं।

इसके बाद नाभि से निकलने वाले अमृत का माथे में तिलक करते हैं। महाज्ञानी ब्राम्हण रावण के बुरे कार्यों पर सच्चाई की जीत का ग्रामवासी तिलक वंदन करते हैं। इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए क्षेत्र से ग्रामीण बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

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