स्वार्थ घटने पर ही दया और दान संभव : मनीष सागर

रायपुर। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागर महाराज ने कहा कि जो समविभाग नहीं करता, उस जीव का मोक्ष नहीं होता है। जो इतना स्वार्थी है कि अपनी प्राप्त सामग्री में से यदि किसी को आवश्यकता होते हुए भी नहीं दे सकता तो वह राग व द्वेष में उलझा रहता है।  जब व्यक्ति किसी को थोड़ा भी नहीं दे पाएगा तो राग द्वेष रहित जीवन को कैसे जी पाएगा। स्वार्थ रहित जीवन कैसे पाएगा, इसलिए सुपात्र दान देना चाहिए। सदैव दया का भाव, दान का भाव रखना चाहिए क्योंकि स्वार्थ घटने पर ही दया और दान संभव है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन मे सबसे पहला काम होता है मन को शांत रखना। आप जब अपने मन को शांत रखोगे तभी सबके मन को शांत रख पाओगे। विपरीत परिस्थितियों में हमेशा शांत रखना चाहिए। शांत रहकर ही हमेशा सही निर्णय कर पाओगे। संसार में इच्छा शक्ति करो तो राग बढ़ता है। इच्छा की थोड़ी उपेक्षा हो जाए, मन मुताबिक नहीं हो तो व्यक्ति द्वेष करता है। राग में सर्वस्व लुटाने की कोशिश करता है और द्वेष में आकर सर्वस्व छीन जाता है। संसार में अपेक्षा इंसान को दुखी करती है। 

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन में सबसे मुख्य सुधारक सच्ची समझ है। हमें समझ सही करने का प्रयत्न करना है। अपनी समझ से हम जीते हैं। सत्संग के लिए आते हैं तो दूसरों की समझ भी मिल जाए, इसके चयन के लिए हमें कुछ विकल्प मिल जाए और ऑप्शन मिल जाए, इतने सारे ऑप्शन में उल्टी व सही समझा कौन सी है और सही समझ को हम स्वीकार करना सीखे तो धीरे-धीरे हमारी समझ भी ज्ञानियों की समझ से मिल जाएगी। यही हमारे जीवन को सुधारने में मददगार होगी।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमेशा कोशिश करें कि अपने मन को पॉजिटिव बनाएं। बिना सोचे, बिना विचारे,बिना अनुभव के गलत इमेज ना बनाएं। सबको अच्छा देखने का प्रयास करें। संसार मे कुछ लोग सुबह उठते हैं तो एक नियम का पालन करते हैं कि सबका भला हो। वहीं आप अपने भाव को बिगाड़ने में उलझे रहते हो। थोड़ा नुकसान हो जाए तो ठीक है, भाव नहीं बिगाड़ना चाहिए। भाव बिगड़ने से भाव बिगड़ने की संभावना होती है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हम अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। हमें लगता है मैंने कहां गलत किया, मैं कहां पाप करता हूं,मैं पुण्यशाली हूं,अपनी हर कथनी और करनी का विश्लेषण करना चाहिए। मैं कितना गिरा हुआ हूं ? यह सवाल अपने आप से जरूर करना। पूरे दुनिया में सबसे गिरा हुआ कोई है वह मैं हूं, यह जवाब जिस दिन आ जाएगा, उस दिन से अपना सुधार शुरू हो जाएगा। अब तक सुधार इसीलिए नहीं हुआ क्योंकि रिलाइज नहीं हुआ कि मैं इतना भयंकर पापी हूं। जब तक पापों का प्रायश्चित नहीं होगा तब तक पाप नहीं सुधरेंगे।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन में आत्म गुणों को विकसित कर लिए तो जीवन सफल हो जाएगा। आत्मा गुणों को प्रकट करना चाहिए। जितनी शक्ति बाहर लगा रहे हो उतनी शक्ति अंदर लगाओ। ज्ञानी कहते हैं सिर्फ 10 प्रतिशत काम, 10 प्रतिशत पुरुषार्थ अपने अंदर के लिए लगा दिए तो जन्म सफल हो जाएगा। राग में कोई सार नहीं है, वैराग्य ही सारवान है। ना किसी से दुखी होना है और  ना किसी को दुखी करना है। जब किसी को दुखी करने की बात आए तो वैराग्य को बढ़ा लो तो हिंसा नहीं होगी। जब कोई दूसरा दुखी करें तो समता बढ़ा लो तो कोई दुखी नहीं कर पाएगा।


















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