नई दिल्ली। भारत सरकार 8 से 13 दिसंबर 2025 तक नई दिल्ली में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए यूनेस्को अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र की मेज़बानी करने जा रही है। ऐतिहासिक लाल किला परिसर को इस आयोजन स्थल के रूप में चुना गया है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यह भारत की मूर्त और अमूर्त विरासत के एक ही छत के नीचे समागम का प्रतीक है।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा हेतु, यूनेस्को ने पेरिस में अपने 32वें आम सम्मेलन में 2003 कन्वेंशन को अपनाया था। अंतर-सरकारी समिति 2003 कन्वेंशन के लक्ष्यों को आगे बढ़ाती है और सदस्य देशों में इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करती है। भारत तीन कार्यकालों तक यूनेस्को अंतर-सरकारी समिति में कार्यरत रहा है। अब तक, 15 भारतीय तत्वों को यूनेस्को प्रतिनिधि सूची में शामिल किया जा चुका है।
यह पहली बार होगा, जब भारत आईसीएच समिति के सत्र की मेज़बानी करेगा और इस बैठक की अध्यक्षता यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी. शर्मा करेंगे। यह आयोजन 2005 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए 2003 कन्वेंशन के भारत द्वारा अनुसमर्थन की बीसवीं वर्षगांठ के मौके पर हो रहा है, जो जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यूनेस्को की परिभाषा के अनुसार, अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में वे प्रथाएं, ज्ञान, अभिव्यक्तियां, वस्तुएं और स्थान शामिल हैं, जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान के हिस्से के रूप में देखते हैं। पीढ़ियों से चली आ रही यह विरासत वक्त के साथ विकसित होती है, सांस्कृतिक पहचान को मज़बूत करती है और विविधता की सराहना करती है।
यूनेस्को अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र की भारत द्वारा मेजबानी एक मील का पत्थर है, जो प्रतीकात्मक महत्व के साथ-साथ नेतृत्व के एक वास्तविक अवसर का भी मिश्रण है। विरासत के एक सशक्त ढ़ांचे और सांस्कृतिक विविधता के इतिहास के साथ, भारत अपने संरक्षण मॉडल को प्रदर्शित और साझा करने के लिए तैयार है। यह आयोजन भारत को अपनी जीवंत विरासत को उजागर करने, वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने और वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु एक नए दृष्टिकोण को आकार देने का अवसर प्रदान करता है।
नई दिल्ली में अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र की सफलता यूनेस्को, भारत सरकार और भारत की सांस्कृतिक परंपराओं की जीवंतता पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी। भारत की विरासत उसके लोगों के माध्यम से जीवित है, जो उसकी भाषाओं, कलाओं, रीति-रिवाजों, त्योहारों और विश्वास प्रणालियों में अभिव्यक्त होती है। इस वर्ष के सत्र की मेजबानी, भावी पीढ़ियों के लिए अपनी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने के प्रति भारत की सतत् प्रतिबद्धता को दर्शाती है।



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